राशन वितरण का लाभ हर ज़रूरतमंद को नहीं मिल रहा- रिहाई मंच
एंटी रैबीज़ इंजेक्शन की भी कमी
आज़मगढ़।उम्मीद थी कि सरकार द्वारा लॉक डाउन के दौरान राशन उपलब्ध कराए जाने के बाद राशन वितरित करने वाले स्वंय समूहों पर से इसका बोझ खत्म हो जाएगा। लेकिन अभी ऐसा प्रतीत नहीं होता। जब तक सुनिश्चित नहीं हो जाता कि हर व्यक्ति तक राशन पहुंचेगा तब तक इन समूहों को अपनी तैयारी रखनी चाहिए।
दूसरी तरफ संजरपुर बाज़ार में पागल कुत्ते ने आसपास के कई गांव के लोगों को काटा है। संख्या कुल 35 बताई जाती है। जिन लोगों से अभी तक सम्पर्क हुआ सभी ने पहला इंजेक्शन लगवा लिया है। लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि सभी पीड़ितों ने लगवाया है। इंजेक्शन अब उपलब्ध नहीं है। तीसरे दिन फिर इंजेक्शन लगना है लेकिन शिकायत करने के बावजूद आपूर्ति का अब तक कही से आश्वासन नहीं मिला है। स्थानीय ब्लॉक मिर्जापुर में पीड़ितों को बताया गया कि उनके पास एंटी रैबीज़ इंजेक्शन नहीं है और वह अभी केवल कोरोना पीड़ितों का इलाज करेंगे। जीवन रक्षक दवाओं की आपूर्ति का भी बुरा हाल है। मेडिकल स्टोर्स और डाक्टरों के पास दवाओं का स्टॉक खत्म होने के करीब है। अगर ऐसा ही रहा तो अगले कुछ दिनों में दूसरी बीमारियों से मौत होने का खतरा बढ़ जाएगा। रिहाई मंच आज़मगढ़ प्रभारी सालिम दाउदी ने कहा कि प्रदेश सरकार द्वारा पहली अप्रैल को राशन वितरण का काम किया गया। जहां एक तरफ यह राहत की बात है वहीं कई भ्रम भी टूटे हैं। सरकार ने घोषणा की थी कि 25 मार्च को प्रदेश की 23 करोड़ जनता को दूध, सब्जी और राशन मुफ्त उपलब्ध कराया जाएगा। लेकिन आज के वितरण में राशन तो दिया गया पर केवल लाल कार्ड धारकों को। हालांकि लॉक डाउन जैसी स्थिति में केवल गरीबी को ही मानक नहीं माना जा सकता। कई अन्य कारणों से आज हर वह व्यक्ति इसके लिए पात्र माना जाना चाहिए जिसके पास खाने को पर्याप्त नहीं है। वह खरीद नहीं पाया या अचानक बंद के कारण उनकी क्रय शक्ति खत्म हो गई है। इसमें वह प्रवासी मज़दूर भी शामिल हैं जो अपने घरों को नहीं पहुंच सके हैं। रिहाई मंच नेता तारिक शफीक ने कहा कि बचाव हेतु मास्क की तैयारी और वितरण का काम जारी है। अब तक संजरपुर गांव, मुसहर बस्ती, दलित बस्ती और प्रजापति बस्ती नव्वा गड़हां, खोदादादपुर मुस्लिम व दलित आबादी और दाऊदपुर गांव में वितरण कार्य सम्पन्न हो चुका है। पड़ोस के दो और गांव की तरफ बढ़ने की योजना है, उनमें एक यादव आबादी वाला तो दूसरी दलित बस्ती है। आशा करते हैं कि हम इसमें भी कामयाब होंगे।